हिन्दी भाषा का उद्गम

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हिन्दी भाषा का उद्गम

विश्व में 3000 के करीब भाषाएँ हैं। जो शब्दसमूह तथा व्याकरण रचना की समानता के आधार पर निर्विवाद रूप से 18 परिवारों में विभाजित है। इन भाषाओं को सही रूप से समझने के लिए इन्हें चार खंडों में विभाजित किया गया है यह चार खंड निम्नलिखित हैं :-

1.यूरेशिया खंड
2.अफ्रीका खंड
3.प्रशांत महासागरीय खंड
4.अमरीका खंड

यूरेशिया खंड

यूरेशिया खंड में निम्नलिखित 10 परिवार आते हैं :-

1.भारत यूरोपीय परिवार
2.द्रविड़ परिवार
3.बुरुशक्की परिवार
4. यूराल अल्ताई परिवार
5. काकेशी परिवार
6. चीनी परिवार
7. जापानी – कोरियाई परिवार
8. अत्यत्तरी (हाईपरबोरी) परिवार
9. बास्क परिवार
10.सामी- हामी परिवार

अफ्रीका खंड

अफ्रीका खंड में निम्नलिखित परिवार आते हैं:-

11. सूडानी परिवार
12. बन्तू परिवार
13. होतेन्तोत बुशमैनी परिवार

प्रशांत महासागरीय खंड

प्रशांत महासागरीय खंड में निम्नलिखित परिवार आते हैं :- ‘

14.मलय- बहुद्वीपीय परिवार
15.पापुई परिवार
16.ऑस्ट्रेलियाई परिवार
17.दक्षिण- पूर्व- एशियाई परिवार

अमरीका खंड

अमेरिका खंड में निम्नलिखित परिवार आते हैं:-

18.अमेरिकी परिवार

इन भाषा परिवारों में अनेक भाषाएं सम्मिलित हैं जो इस प्रकार है :- जैसे भारोपीय परिवार में संस्कृत, ग्रीक ,लैटिन, अंग्रेजी, फ्रैच, जर्मन,हिन्दी, मराठी, गुजराती, पंजाबी, बंगला भाषाएं आती है। द्रविड़ परिवार में तमिल, तेलुगू, कन्नड़, मलयालम आदि भाषाएं सम्मिलित हैं। अब अगर हम बात करें हिंदी की तो हिन्दी भारोपीय परिवार की भाषा है ।भारोपीय परिवार को भी आगे दो भागों में विभाजित किया गया है

1.केटुम् वर्ग
2.सतम् वर्ग

इन वर्गों के भी आगे उप भाग हैं ,जिनमें से बात करें हिन्दी की तो हिन्दी सतम् वर्ग में आती है । सतम् वर्ग को आगे 5 भागों में विभाजित किया जा सकता है :-
1.इलीरियन
2.बास्टिक
3. स्लैवोनिक
4.आर्मेनियन
5.आर्य भाषा परिवार

इन पांच भागों में अंतिम भाग आर्य भाषा परिवार है ।आर्य भाषा परिवार को आगे 3 उप- परिवारों में विभाजित किया गया है :-
1. ईरानी भाषा वर्ग
2.दरद भाषा वर्ग
3.भारतीय भाषा वर्ग

वास्तव में भारतीय भाषा वर्ग में ही हिन्दी को रखा गया है। लेकिन जो हिन्दी हम आज पढ़ते हैं ,इस हिन्दी की उत्पत्ति और विकास की लंबी प्रक्रिया रही है। 1000 ई0 के लगभग जब अपभ्रंश युग अपनी समाप्ति पर था ,तो दूसरी ओर शौरसेनी अपभ्रंश से हिन्दी का स्वरूप निर्मित हो रहा था। महाराष्ट्री, पैशाची, मागधी, शौरसेनी इत्यादि प्राकृतो में हिंदी के उद्भव और विकास की दृष्टि से शौरसेनी का सर्वाधिक महत्व है। ब्रज और खड़ी बोली के विकास में इसकी महत्वपूर्ण देन है ।तब से लेकर अब तक हिन्दी भाषा के इतिहास को क्रमशः तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है :-
1.आदिकाल
2.मध्य काल
3. आधुनिक काल

हिन्दी शब्द फारसी का है जिसका अर्थ है -हिन्दी अथवा भारत की बोली। परन्तु आज यह शब्द भारत की हर किसी बोली अथवा भाषा के लिए प्रयुक्त नहीं किया जा सकता । यह हिन्दी का प्राचीन व्यापक अर्थ है जो अलबरूनी ,अमीर खुसरो और अबुल फजल ने ग्रहण किया ।आज इसका प्रयोग साधारणतया उत्तरी भारत के एक विशिष्ट भूभाग के हिंदुओं की साहित्यिक भाषा तथा इसी भाषा की प्रादेशिक बोलियों और उनसे संबंध रखने वाले प्राचीन साहित्यिक रूपों के अर्थ में लिया जाता है। हिन्दी शब्द वैदिक, संस्कृत, पाली, प्राकृतिक और अपभ्रंश में नहीं मिलता ।अतः यह ज्ञात होता है कि यह ईरानियों की देन है। 500 ई0 पू0 ईरानी सम्राट दारा के अभिलेखों में ‘हिंदू’ शब्द भारत देश के लिए प्रयुक्त हुआ है । यह ‘हिंदू’ मूल रूप से संस्कृत शब्द ‘सिंधु’ का फारसी रूपांतर है क्योंकि संस्कृत में ‘स’ का उच्चारण फारसी में ‘ह’ के रूप में होता है -जैसे असुर = अहुर इत्यादि । इस प्रकार ‘इ’ पर बलाघात होने पर तथा ‘उ’ का लोप होकर ‘हिंदी’ शब्द का विकास हुआ।

हिंदी व्याकरण – संधि (व्यंजन संधि)

संधि – विचार (स्वर संधि)

वर्णों का वर्गीकरण

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