शब्द विचार

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 शब्द विचार

 जिसमें शब्दों के भेद ,उच्चारण ,मिलने की रीति आदि की जानकारी हो उसे शब्द विचार कहते हैं ।जैसे :- राम, श्याम, गंगा, हिमालय आदि ।

शब्द :- वर्णों  या ध्वनियों के सार्थक मेल को शब्द कहते हैं। जैसे -आग, मन्दिर, श्रीराम, गंगा, हिमालय आदि ।

शब्द के प्रकार:-

शब्द मूल रूप से दो प्रकार के होते हैं:-

1 ध्वन्यात्मक या ध्वनि प्रधान

2 वर्णनात्मक या वर्ण प्रधान

ध्वन्यात्मक शब्द अविभाज्य और निरर्थक होते हैं।  इसके विपरीत वर्णात्मक शब्द विभाज्य और सार्थक होते हैं। शब्द में सार्थकता आती है, ध्वनि के साथ अर्थ के मेल के कारण । इसलिए अर्थ के मेल के अभाव में वर्णात्मक शब्द भी निरर्थक हो जाते हैं । जैसे – ‘आग’ एक सार्थक शब्द है, क्योंकि इसका कुछ अर्थ निकलता है,किंतु ‘गआ’ निरर्थक है । कुछ ऐसे निरर्थक शब्द भी होते हैं, जो सार्थक शब्द के साथ या किसी वाक्य में किसी विशेष अर्थ को प्रकट करने के लिए प्रयुक्त होते हैं । तब ये भी शब्द कहलाते हैं । जैसे – टर – टर , खट-खट, कल – कल आदि सार्थक शब्द है।

उदाहरण:-

1 “चलो रोज की कलकल से तो जान छूटी।

यहां ‘कलकल ‘ का अर्थ है-‘झगड़ा’।

2 “क्या टरटर लगा रखी है।

यहां ‘टर- टर’ का अर्थ ‘अनावश्यक बात’  है ।

कुछ अन्य ऐसे निरर्थक शब्द जो सार्थक शब्द के साथ प्रयुक्त होकर कुछ अर्थ देते जान पड़ते हैं। जैसे चाय-वाय, गाजा-बाजा ,पान – वान। इनमें वाय,बाजा, वाक निरर्थक शब्द है किंतु सार्थक शब्दों के साहचर्य के कारण किसी ना किसी अर्थ के घोतक बन जाते हैं परंतु भाषा में सार्थक शब्द अधिक महत्वपूर्ण होते हैं ।

शब्दों का वर्गीकरण

हिंदी भाषा के शब्दों का वर्गीकरण चार प्रकार से किया जा सकता है :-

1 उत्पत्ति (उद्गम) के विचार से

2 व्युत्पति के विचार से

3 अर्थ के विचार से और

4 प्रयोग या रूपांतर के विचार से

 

1 उद्गम या उत्पत्ति के विचार से शब्द भेद

उद्गम या उत्पत्ति की दृष्टि से हिंदी में पांच प्रकार के शब्द हैं :-

1 तत्सम

2 तद्भव

3 अर्द्धतत्सम

4 देशज

5 विदेशी

 

1 तत्सम:- संस्कृत के वे शब्द हैं, जो बिना किसी परिवर्तन के  ज्यों के त्यों हिंदी भाषा में प्रयुक्त होते हैं। जैसे :-  पिता, अग्नि, देव, नगर, सुंदर,आदि ।

2 तद्भव:- संस्कृत के वे शब्द है, जो परंपरा से विकृत होकर हिंदी भाषा में प्रयुक्त होते हैं। जैसे:- अग्नि

से आग , ग्राम से गांव, दंत से दांत, आदि।

3 अर्द्धतत्सम शब्द :- जो शब्द संस्कृत- प्राकृत द्वारा अंशतः विकृत होकर तत्सम और तद्भव के बीच हैं, उन्हें अर्द्धतत्सम कहते हैं ।जैसे:- जन्मजनम, चूर्णचूरण, धर्मधरम आदि।

4 देशज :- जो शब्द संस्कृत से भिन्न अन्य भारतीय भाषाओं से संबंध रखते हैं,उन्हें देशज शब्द कहते हैं।जैसे :-

(क) आदिम निवासियों के शब्द गंडा, कौड़ी,खोप आदि।

(ख) प्राकृत के शब्द- बाप,पेट,पगड़ी,कोट  आदि।

(ग) मराठी से – चाल, प्रगति, बाजू, सीताफल आदि ।

(घ) अनुकरणवाचक शब्द – खड़खड़ाना ,लड़खड़ाना, भनभनाना, भीड़भाड़ आदि।

5 विदेशी शब्द :- जो शब्द विदेशी प्रभाव के कारण भिन्न-भिन्न भाषाओं से आते हैं, उन्हें विदेशी शब्द कहते हैं। ऐसे शब्दों का संबंध कई भाषाओं से है। जैसे:-

(क)अरबी:- अजब, अमीर, आदमी, आदत, इनाम, औरत, किताब, मदद, खबर, आदि ।

(ख) फारसी:- आराम, आबाज, अफसोस, आमदनी, किनार, खुश, खूब, दोस्त, नशा, बीमार, सूद आदि।

(ग) तुर्की:-  कैंची, चाकू, तो, लाख, बहादुर आदि।

(घ) पुर्तगाली:-  गोदाम, नीलाम, पादरी, गिरजा आदि।

(ङ) यूनानी:-  कीमिया, करनफूल आदि।

(च) जापानी:- रिक्शा आदि।

(छ) अंग्रेजी:-  रेल, टिकट, स्कूल आदि ।

 

उपयुक्त सभी प्रकार के शब्दों में तद्भव शब्दों की प्रधानता है ,क्योंकि हिंदी जटिलता से दूर भागती रही है। इसकी क्रियाएँ और सर्वनाम प्रायः सबके सब तद्भव हैं। अधिकांश संज्ञाएँ, विशेषण और क्रिया विशेषण भी तद्भव ही हैं । विदेशी शब्द भी तत्सम और तद्भव दोनों रूपों में है । मध्यकाल तक संस्कृत के तत्सम शब्द भी कम थे। किंतु इधर उनकी संख्या बढ़ रही है। नई-नई आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए संस्कृत के आधार पर नए-नए शब्द  गढ़े जा रहे हैं ।किंतु हिंदी से एकदम घुले-मिले विदेशी शब्दों की जगह संस्कृत के शब्द लादना ठीक नहीं है। इससे हिंदी की सरलता को धक्का पहुंचने का भय है।अतः यदि सावधानी से कदम नहीं बढ़ाया गया तथा अन्य आधुनिक भाषाओं के भी दरवाजे नहीं खटखटाये गए, तो हिंदी अपनी सरलता और लोकप्रियता खो बैठेगी।

 

 Reference book व्याकरण भारती

हिंदी व्याकरण – संधि (व्यंजन संधि)

संधि – विचार (स्वर संधि)

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