वर्णों का वर्गीकरण
वर्णों का वर्गीकरण निम्नलिखित प्रकार से किया जा सकता है:-
1 प्रयत्न के अनुसार (स्वरतंत्री के कंपन के आधार पर)
2 बाह्य प्रयत्न के अनुसार (श्वास की मात्रा के आधार पर)
1 प्रयत्न के अनुसार (स्वरतंत्री के कंपन के आधार पर):- वर्णों के उच्चारण के समय पहले और पीछे वाणी का जो व्यापार होता है उसे प्रयत्न कहते हैं। इसके दो भेद हैं:-
(क) आभ्यान्तर प्रयत्न
(ख) बाह्य प्रयत्न
(क) आभ्यान्तर प्रयत्न :- वर्णों के उच्चारण के आरंभ में होने वाले अंदर के व्यापार को अभ्यांतर प्रयत्न कहते हैं । इसके तीन भेद है:-
1 विवृत
2 संवृत (स्पृष्ट)
3 अर्द्धविवृत
1 विवृत :- जिनके उच्चारण करते समय मुख्य द्वार पूरा खुला रहता है। जैसे– सभी स्वर विवृत हैं।
2 संवृत (स्पृष्ट):- जिनके उच्चारण के समय जिह्वा का तालु आदि भिन्न–भिन्न स्थानों से पूरा स्पर्श होता है, उसे संवृत कहते हैं ।जैसे – क से म तक सभी वर्ण।
3 अर्द्धविवृत :- जिन का उच्चारण करते समय मुख्य द्वार थोड़ा खुला रहता है । यह वर्ण अंतस्थ वर्ण होते हैं। जैसे – य ,र ,ल ,व ।
(ख) बाह्य प्रयत्न :- वर्णों के उच्चारण के अंतर में होने वाले बाहर के प्रयत्न को बाह्य प्रयत्न कहते हैं। इसके दो भेद हैं :-
1 घोष
2 अघोष
1 घोष :- जिनके उच्चारण में नाद का प्रयोग होता है, उनमें स्वर यंत्र की यंत्रिक आपस में टकराती है। उदाहरण सभी स्वर और व्यंजन वर्ण के ग,घ,ङ,ज,झ,ञ,ड,ढ,ण,द,ध,न,ब,भ,म,य,र,ल,व,ह
2 अघोष :- ऐसी वर्णों के उच्चारण में स्वर यंत्र की तंत्रिका निस्पन्द रहती है तथा केवल सांस का प्रयोग होता है ।जैसे- क,ख,च,छ,ट,ठ,त,थ,प,फ,श,ष,स
2 बाह्य प्रयत्न के अनुसार (श्वास की मात्रा के आधार पर):-
(क) अल्पप्राण
(ख) महाप्राण
(क) अल्पप्राण :- जिन के उच्चारण में थोड़ा परिश्रम हो , जैसे वर्गों के पहले, तीसरे, पाँचवे वर्ण त,र,ल,व सब स्वरों और अनुस्वार का प्रयत्न अल्पप्राण होता है।
(ख) महाप्राण :- जिन के उच्चारण में अधिक परिश्रम हो, जैसे- वर्गों का दूसरा, चौथा वर्ण श,ष,स,ह और विसर्ग का प्रयत्न महाप्राण होता है।
वर्णों के उच्चारण स्थान
उच्चारण स्थान:- जो वर्ण मुख के जिस भाग से उच्चारण किया जाए, मुख का वह भाग उसका उच्चारण स्थान कहलाता है। उच्चारण स्थान मुख्यतः छः हैं :-
1 कण्ठ :- अ, आ, कवर्ग और विसर्ग कण्ठ से बोले जाते हैं। कण्ठ से बोले जाने वाले वर्णों को कण्ठय कहते हैं।
2 तालु :- इ,ई, चवर्ग , य और श का उच्चारण जिह्वा का तालु पर लगाने से होता है । तालु से उच्चारण होने वाले इन वर्णो को तालव्य कहते हैं।
3 मूर्द्धा :- ऋ, टवर्ग, र और ष का उच्चारण जिह्वा को मूर्द्धा पर लगने से होता है। मूर्द्धा से उच्चारण होने के कारण इसे मूर्द्धन्य कहते हैं ।
4 दन्त :- ऌ, तवर्ग, ल और स का उच्चारण जिह्वा को दांतों पर लगने से होता है। इन वर्णों को दन्त्य कहते हैं।
5 ओष्ठ :- उ ,ऊ और पवर्ग ओष्ठ से बोले जाते हैं, इन्हें ओष्ठय कहते हैं।
6 नासिका :- अनुस्वार और ङ,ञ,न,म का उच्चारण मुख और नासिका से होता है इसलिए इन्हें सानुनासिक कहते हैं ।
दो स्थानों से उच्चारण होने वाले वर्ण :- कई ऐसे वर्ण है जिनका उच्चारण दो स्थानों से होता है ।उदाहरणार्थ :-
1 दन्तोष्ठय :- व का उच्चारण दाँत और ओष्ठ से होता है, इसे दन्तोष्ठय कहा जाता है ।
2 कण्ठोष्ठय :- ओ, औ का उच्चारण स्थान कण्ठ और ओष्ठ से होता है, इनको कण्ठोष्ठय कहते हैं ।
3 कण्ठ तालव्य :- ए,ऐ का उच्चारण स्थान कण्ठ और तालू से होता है, इन्हें कंठ तालव्य कहते हैं ।
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