हिंदी भाषा विकास एवं स्वरूप

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हिंदी भाषा विकास एवं स्वरूप

हिंदी भारत  यूरोपीय परिवार की भाषा है । इस परिवार की भारतीय शाखा को ‘भारतीय आर्य भाषा ‘ भी कहा जाता है।  इस भाषा का प्राचीनतम रूप वैदिक संस्कृत है। वैदिक संस्कृत से हिंदी भाषा तक की विकास -यात्रा में पांच पड़ाव स्वीकार किए जाते हैं :-

1.वैदिक संस्कृत (800 ई0  पूर्व से 1500 तक)

2.लौकिक संस्कृत (500 ई0 पूर्व से 800 ई0 तक)

3.पाली संस्कृत  1500 ई0 पूर्व से 500 ई0 तक)

4.अपभ्रंश (500 ई0 पूर्व से 1000 तक)

5.हिंदी एवं अन्य आधुनिक भारतीय भाषाएँ (1000 ई0 से अब तक)

इस विकास क्रम से स्पष्ट हो जाता है कि आधुनिक भारतीय भाषाएँ अपभ्रंश से विकसित हुई है ।अपभ्रंश का समय 500 ई0 से 1000 तक के बीच माना जाता है ।हिंदी का उद्भव इसलिए 1000 ई0 से माना जाता है।

हिन्दी की उपभाषाएँ एवं बोलियाँ

 हिंदी का क्षेत्र बहुत व्यापक है। जैसे दिल्ली, हिमाचल, राजस्थान, मध्य प्रदेश ,उत्तर प्रदेश ,बिहार आदि प्रदेशों में। इन प्रदेशों में हिंदी के अनेक रूप प्रचलित हैं ।उन्हें पांच प्रमुख भागों में बाँटा गया है ।जो हिंदी की उपभाषाएँ कहलाती है। हिंदी भाषा की उपभाषाओं में निम्नलिखित  हैं :-

1.पश्चिमी हिंदी

2.पूर्वी हिंदी

3.राजस्थानी हिंदी

4.पहाड़ी हिंदी

5.बिहारी हिंदी

1.पश्चिमी हिंदी की बोलियाँ

  • ब्रज भाषा
  • खड़ी बोली
  • हरियाणवी
  •  बुंदेली
  • कन्नौजी

2.पूर्वी हिंदी :-

  • अवधी
  • बघेली
  • छत्तीसगढ़ी। 

3.राजस्थानी:-

  • मारवाड़ी
  • जयपुरी
  • मेवाती
  • मालवी।

4.पहाड़ी हिंदी:

  • पश्चिमी पहाड़ी
  • मध्यवर्ती पहाड़ी (कुमायूँनी और गढ़वाली)

5.बिहारी हिंदी:-

  • भोजपुरी
  • मगधी
  • मैथिली।

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि हिंदी अपने अलग-अलग रूपों में, अलग-अलग स्थान पर प्रचलित है और इन्हीं अलग-अलग रूपों के कारण इंद्रधनुष के समान शोभायमान है।

Reference व्याकरण भारती

हिंदी व्याकरण – संधि (व्यंजन संधि)

संधि – विचार (स्वर संधि)

वर्णों का वर्गीकरण

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